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________________ 284 आध्यात्मिक आलोक करेगा-अपने को ऊंचा उठाएगा और दूसरों को भी ऊंचा उठाने का प्रयत्न करेगा। जो मनुष्य उदितोदित है वह अपने धन से दीन, हीन, असहाय और विपन्न जनों के दुःख को दूर करेगा । ऐसा करके वह पुनः उदित वनेगा और दूसरों के उदय में भी सहायक बनेगा । यदि उसे सुबुद्धि प्राप्त है तो दूसरों को सत्परामर्श देकर कुपथ से हटाएगा, सुपथ पर लाने का प्रयत्न करेगा, ज्ञान का प्रकाश देगा । इस प्रकार स्वयं प्रकाशित होने के साथ-साथ दूसरों को भी प्रकाशित करेगा 1 किसी कवि ने ठीक कहा है कमनीय कुन्दन की कान्ति का कलेवर है, कौन काम का जो काम मारा नहीं आपने । माना आप रुस्तम से कम नहीं, किन्तु क्या, जो दोनों को विपत्ति से उवारा नहीं आपने । कंकरी सो सम्पदा करोड़ों की न कौड़ी की, जो दिया दीन-दुःखो को सहारा नहीं आपने । व्यर्थ हुए पण्डित प्रवीण प्रतिभा के पूरे, देश की दशा को जो सुधारा नहीं आपने ।। अगर कामवासना पर विजय प्राप्त न कर सके तो कुन्दन की सी कान्ति से कलित आपका यह कलेवर किस काम का? रुस्तम-सा वल पाकर भी यदि गरीव को विपदा से नहीं बचाया तो आपका बल किस मर्ज की दवा है ? पुण्य के योग से जो शक्ति प्राप्त हुई है, उसे पुण्य कार्य में जो नहीं लगाता स्व-पर कल्याण में व्यय नहीं करता, उसका उस शक्ति को पाना व्यर्थ है । व्यर्थ हो नहीं दरन् अकल्याण का कारण है । ऐसे अभागे मनुष्य के लिए यही कहा जा सकता है कि उसने हीरे की कणी पाकर उसे आत्मघात का कारण बना लिया ! जो पुण्य-पाप का कारण बनता है वह पापानुबन्धी पुण्य कहलाता है, जो बाह्य में पुण्य रूप हो कर भी वस्तुतः पाप की ही श्रेणी में गिना जाता है । किसी महापण्डित का मस्तिष्क यदि समाज और देश की उन्नति में नहीं लगता तो उसका पाण्डित्य किस काम का? आज के वैज्ञानिक भौतिक पदार्थों की बहुत-सी सूक्ष्म शक्तियों को समझते हैं। वे भौतिक पदार्थों के महापण्डित कहे जा सकते हैं । उनके वैज्ञानिक कौशल ने संसार को कुछ का कुछ बना दिया है । आज वे सुदरगामी राकेट छोड़ कर चन्द्रमा और मंगल आदि का पता लगाने के लिए प्रयत्नशील हैं। सैकड़ों चमत्कार उन्होंने इस धरती पर दिखलाए हैं किन्तु उनकी इस सूक्ष्म प्रज्ञा का नतीजा क्या है ? उस प्रज्ञा के परिणामस्वरूप जिन भयानक अणुबमों
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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