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आध्यात्मिक आलोक
221 स्थूलभद्र का मन-मयूर आनन्द से नाच उठा । स्थूलभद्र की साधना दिखने में कोमल होते हुए भी निराले प्रकार की कठोरता लिए हुए थी । गुरु से मिले ज्ञानबल, आत्मबल और तपोबल को ग्रहण कर साधक ने उसे भली-भांति चमकाया है । इसी प्रकार यदि हर एक व्यक्ति साधना के मार्ग में अग्रसर होगा, तो अपना उभय लोक में कल्याण कर सकेगा।