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________________ 204 आध्यात्मिक आलोक पाप कुछ कारणों को लेकर होते हैं । हिंसा के कारणों को घटाने से हिंसा स्वयं घट जाएगी, बिलकुल कम हो जाएगी । मनुष्य प्रायः दो पैसे मिलाने के लिए झूठ बोलता है और जीवन को अप्रामाणिक बनाता है । दण्ड से बचने के लिए, मजाक के लिए लोभ या क्रोध के वश में होकर भी मनुष्य आत्म रूप सफेद चादर में असत्य का काला धब्बा लगता है । यदि कारणों को पूर्ण रूप से घटा दें, तो कोई कारण नहीं कि झूठजन्य पापों से न बचा जा सके । महावीर स्वामी ने आनन्द से कहा कि जो अनर्थ दण्ड है उन पर पहले प्रहार कर । आनन्द ने भगवद्वाणी पर श्रद्धा रख कर भोगोपभोग प्रमाण के बाद अनर्थ दण्ड छोड़ा । अपध्यान, प्रमाद, हिंसाकारी पदार्थ दूसरे को देना और पाप कर्म का उपदेश ये अनर्थ दण्ड हैं । तलवार, छुरी, रिवाल्वर आदि घातक अस्त्र घर में रहते हैं, पर बिना विचारे किसी के मांगने पर दे देना यह अनर्थ दण्ड है । क्योंकि इनके द्वारा दूसरों की हिंसा हो सकती है । ऐसे हिंसाकारी वस्तुओं को किसी और को दे देने के पहले मांगने वाले की विश्वस्तता तथा उसका प्रयोजन मालूम कर लेना चाहिए, यह दृढ़ निश्चय हो जाने पर कि उनका अशुभ कार्यों में उपयोग नहीं होगा, फिर देने का विचार करना चाहिए । ऐसे ही विष या नशीले पदार्थ भी बिना खास स्थिति के समझें किसी को देना श्रेयस्कर नहीं है । औषधि के रूप में रखी विषैली वस्तु, यदि सावधानी से न रखी जाय, तो उनसे महान् अनर्थ हो सकता है । खान-पान की उत्तेजकता को देखते हुए आज उत्तेजना की संभावना अधिक बढ़ गई है। उत्तेजना में आकर आज लोग विष पान करने पर उतारू हो जाते हैं क्योंकि दिमागी उष्णता दिन व दिन सीमातीत होती.जा रही है। आए दिन समाचारपत्रों में इस सम्बन्ध की दुर्घटनाएं प्रकाशित होती रहती हैं । आज समाज में ज्ञान बल क्षीण हो गया है । यही कारण है कि मानसिक उत्तेजना का क्षेत्र व्यापक हो गया है । ज्ञान को तो कतई हटा दिया गया है और विज्ञान ही विज्ञान का सर्वत्र चमत्कार दिखाया जा रहा है । पाक, श्रृंगार वस्तु सजावट और आमोद-प्रमोद का विज्ञान बढ़ रहा है परन्तु जीवन-निर्माण का ज्ञान नहीं दिया जाता । नीति कहती है-वे माता-पिता अपराधी हैं जो बालक को सच्चे ज्ञान से वंचित रखते और उसे आरम्भ से ही उन्नत जीवन का पाठ नहीं पढ़ाते । क्योंकि बालक का दायित्व पालक पर है, बच्चे तो अबोध और अज्ञानी होते हैं । ___आनन्द ने किसी को भी हिंसाकारी पदार्थों को नहीं देने का संकल्प कर लिया । आज तो बहुत व्यक्ति औजार, दारू, पटाके आदि रखकर अनर्थ करते हैं । दीवाली, दशहरे में अपने सम्बन्धियों और मित्रों को फल एवं मिठाई के साथ पटाखे
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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