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________________ ___201 आध्यात्मिक आलोक इसलिए दीपक दीपक की महिमा नहीं पाता । वहां सद्गुरू रूप दीप के संग की आवश्यकता है। . धर्म संरक्षण के लिए श्रुत धर्म की आराधना निरन्तर की जानी चाहिए । श्रुत धर्म वह ताकत है, जो वासना तथा भौतिकवाद की गति को मोड़ कर शान्तता और स्थिरता लाने का काम करता है । इससे हमारे पूर्वजों का भूतकाल में जीवन बना और हमारा भविष्य भी बनेगा | शास्त्रों का लेख वाचन करके हमारे पूर्वजों ने अपने मन को स्थिर कर शान्त बनाया । उनके मन में ज्ञान की ज्योति जली । समाज के भ्रान्त विचार रूप कचरे को उन ने दूर करने की चेष्टा की जो मानव जीवन को असंस्कृत बनाए हुए था । ज्ञान की ज्योति जगमगाने से जीवन में मोड़ आता है और व्यक्तित्व दमकता है। यह भ्रम ठीक नहीं कि गृहस्थ ज्ञानियों के वर्ग के बढ़ने से साधुओं की कद्र कम हो जायेगी । विद्वान ही विद्वत्ता की कद्र करेंगे । सामान्य श्रोता कथा, कहानी या गायन में अधिक प्रसन्नता मानता है किन्तु वक्ता मुनि की विद्धता तथा योग्यता की खरी इज्जत विद्वान श्रावक ही भली-भांति कर सकते हैं । श्रुत ज्ञान जीवन का प्रमुख सहारा है । इतिहास साक्षी है कि श्रुतबल, स्वाध्याय तथा ज्ञान ने लाखों मनुष्यों के जीवन को सुधार दिया है। वास्तव में जिन्दगी उसी की सफल है जिसने अपना जीवन ऊंचा उठाया । किसी कवि ने ठीक ही कहा "हंस के दुनिया में, मरा कोई कोई रोके मरा जिन्दगी पायी मगर, उसने जो कुछ होके मरा ।" युवकों का नारा होना चाहिए कि "हम करके नित स्वाध्याय, ज्ञान की ज्योति जगाएंगे। अज्ञान हृदय का धोकर के, उज्ज्वल हो जाएंगे। युवक संघ की सामूहिक आवाज होनी चाहिए कि हम धर्म ध्वज को कभी भी नीचा नहीं होने देंगे तथा नित स्वाध्याय करके ज्ञान की ज्योति जगाएंगे, ऐसे संकल्प लेने वाले अनेक साधक हो गए हैं । श्रत ज्ञान के बल से शासन को बल मिला । धन की दृष्टि से अनेकों बने हुए बिगड़े और बिगड़े हुए बन गए, इसके उदाहरण भरे पड़े हैं। धन को ताले में बन्द करो या जमीन में गाड़ दो, फिर भी वह नष्ट होगा, अनेक बड़े-बड़े बैंक फेल हो गए । जमीन में भी कभी-कभी फसल नहीं आती । ब्याज में लगा धन भी नष्ट हो जाता है । अतएव उसकी चिन्ता व्यर्थ हैं क्योंकि वह नाशवान है और लक्ष्मी चपला है । अतः श्रुत ज्ञान की चिन्ता करो, जो जीवन के लिए परम धन है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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