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________________ 142 आध्यात्मिक आलोक जो जीवे वि न याणेइ, अजीवे वि न याणेइ । जीवाजीवे अयाणतो, कहं सो नाहिइ संजमं ।। जो जीव अजीव, बन्ध मोक्ष एवं पाप पुण्य को नहीं जानता, वह संयम को कैसे जान सकेगा ? यहां भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में विवाद छिड़ जाता है । यदि भक्ति मार्गी ज्ञान मार्ग को और ज्ञान मार्गी भक्ति मार्ग को ठुकरा दे, तो साधना में प्रगति नहीं हो सकेगी । भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग दोनों मिलकर चलें, तभी सब कार्य ठीक चल सकता है । भगवान् महावीर स्वामी ने विवेक की आंखों से काम लेने का आह्वान किया है । ___संसार के अनन्त पदार्थों और चतुर्विध पुरुषार्थ में यदि सार है, तो मोक्ष । संसार के सभी धर्मों ने एक स्वर से जीवन का लक्ष्य मोक्ष्य को स्वीकार किया है। कविवर विनयचन्दजी ने ठीक ही कहा है जीवादिक नवतत्व हिये धर, हेय ज्ञेय समझी जे । तीजी उपादेय ओलख ने, समकित निर्मल कीजे रे ।। यहां संसार के तत्व पदार्थों को ९ प्रकार का बतलाया है । वैज्ञानिक ९२ तत्व बतलाते हैं | आजकल इसकी संख्या कुछ और बढ़ गयी है । जो मौलिक हो, जो दूसरों द्वारा न बनाया जा सके, उसे तत्व कहते हैं। जिसमें चेतना, जान तथा सुख-दुख को अनुभव करने की शक्ति हो । जो घटता, बढ़ता और ज्ञान दर्शन की चेतना से युक्त हो, वह जीव तत्व है । इससे विपरीत जड़ तत्व है । ___ बाहर के कोई तत्व हमारा बिगाड़ नहीं करते, वरन् भीतर रहे हुए अपने ही विकारों से हमारा बिगाड़ होता है । काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि आत्मा के विकार ही वस्तुतः आत्मघाती हैं । इनमें से एक का भी जब हृदय में प्राबल्य होता है तो मनुष्य बेभान बनकर क्या से क्या कर बैठता है । संसार के समस्त अनर्थों की जड़ ये ही हैं । जहां ये सबके सब जोर पकड़ ले तो फिर ज्वालामुखी के मुख पर बैठे रहने की स्थिति हो जाती है । उस भयंकर स्थिति से बचना असंभव है । काल के मुख में पड़कर आदमी जी सकता है किन्तु काम, क्रोधादि के पूरे चपेट में पड़कर बचना सरल नहीं है । . ___संसार में देखा जाता है, कांच को काटने के लिए हीरे की कणी काम आती है, अन्य कोई औजार उसको काट नहीं सकता । इसी प्रकार आत्मा की विभाव परिणति ही आत्मा को काटती है। हमारे आत्मगुणों को हीरा, स्वर्ण और भूमि आदि नहीं ढंकते, वास्तव में हमारा मोह और आसक्ति ही आत्म-गुणों को ढंकती
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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