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________________ [२३ ] मानव के तीन रूप मनुष्य जीवन को उच्चता की ओर उठाने तथा अधमता की ओर ले जाने का प्रमुख साधन आचार है । संसार में तीन प्रकार के प्राणी होते हैं '1 १. निकृष्ट (जघन्य) २. मध्यम और ३. उत्तम । जिन व्यक्तियों में सदाचार तथा सद्गुणों का सौरभ नहीं होता, वे संसार में आकर यों ही समय नष्ट कर चले जाते हैं। क्योंकि मनुष्य जीवन की प्राप्ति परम दुर्लभ है और ऐसे दुर्लभ नर-जीवन को व्यर्थ में गंवाना, अज्ञानता की परम निशानी है। ऐसे व्यक्तियों को निकष्ट प्राणी समझना चाहिये । मध्यम श्रेणी के प्राणी अपने जीवन-निर्वाह के साधन में लगे रहते हैं तथा स्व-पर का उत्थान नहीं कर सकते तो अधिक बिगाड़ भी नहीं करते । तीसरी कोटि के प्राणी अपने जीवन की सुरभि तथा विशेषता द्वारा अमरत्व प्राप्त करते हैं तथा सांसारिक लोगों के जीवन सुधार में सहयोग दिया करते हैं। ऐसे प्राणी उत्तम या प्रथम श्रेणी के माने जाते हैं । मनुष्य अपने जीवन को चाहे जितना ऊंचा उठा सकता है, क्योंकिमहानता प्राप्ति के सारे साधन उसके हाथ में हैं। देवताओं के पास भोग और सुख प्राप्ति के साधन हैं, किन्तु जीवन को उज्ज्वल बनाने का जितना अच्छा साधन उनको चाहिये उपलब्ध नहीं है। जीवन के अनमोल समय को व्यर्थ ही नष्ट कर डालना, मानव की महान् जड़ता है। जहां साधारण मनुष्य धन, जन, सत्ता, कोठी, बंगला और वैभव की सामग्नियां प्राप्त करने में प्रयत्नशील रहते हैं, वहां विचारवान और विवेकी पुरुष- उन्हें नश्वर और क्षणिक मानकर, आध्यात्मिक जीवन बनाने में तत्पर रहते हैं। संसार की समस्त नश्वर वस्तुएं बनाने पर भी विनष्ट हो जाती हैं, किन्तु उत्तम जीवन एक बार बना लिया जाये, तो वह फिर कभी बिगड़ता नहीं । शासन में उच्च से उच्च पद पाकर भी लोग बिगड़ जाते हैं, तो साधारण पद की तो बात ही क्या ? अतएव
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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