________________
आध्यात्मिक आलोक
111
महामन्त्री शकटार ने कैसे समय पाकर इस विषय को सम्राट नन्द के सामने रखा यह तो आगे पता चलेगा, किन्तु इस प्रसंग से हमें यह भली-भांति समझ लेना है कि लोभ सब पापों का मूल है । यदि वररुचि लोभ के वशीभूत न होते तो महामन्त्री को भी इतनी चिन्ता नहीं होती । मगर वररुचि की लोभ वृत्ति एवं संग्रह वृत्ति इस तरह असीमता की ओर पैर बढ़ाती गई कि मजबूर होकर महामन्त्री को इसको रोकने के लिए कदम बढ़ाना पड़ा । हमें भी काम क्रोध लोभादि शत्रुओं को वश में रखकर अपना जीवन आनन्दित बनाना है तथा इन कुंवृत्तियों से बचते जाना है, जिससे लोक और परलोक दोनों के कल्याण का मार्ग सरलता से खुल सकें ।