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________________ 108 आध्यात्मिक आलोक नहीं करूंगा । उसने अपने उपयोग में दो तेल रखे । जिसके निर्माण में सौ का खर्च हो या सौ द्रव्य का मिश्रण हो उसे शतपाक कहते हैं । ऐसी ही सहस-पाक की भी विधि है । आज भी कई सरसों के तेल की मालिश करते और फिर साबुन लगा कर नहाते हैं । आनन्द ने मालिश के बाद शरीर रूखा करने को गेहूँ के आटे की पीठी के अलावा शेष उवर्तन का त्याग कर दिया । उद्वर्तन के बाद स्नान किया जाता है ऐसी परिपाटी है । श्रावक बनने के बाद आनन्द ने स्नान में होने वाले जल के दुरुपयोग और अपरिमित हिंसा को बचाना आवश्यक समझा । क्योंकि जल सांसारिक प्राणियों का जीवन है । कोशकारं अमर सिंह ने जल का नाम गिनाते हुए कहा है-"पयः कीलालममृतं जीवनं भुवनं वनम्” जल अमृत और जग जीवों का जीवन है । इसको औषध भी कहा गया है। प्राकृतिक चिकित्सा में जल, मिट्टी, हवा और सूर्यकिरण को ही प्रमुख औषध माना गया है । हवा के बाद जल का ही स्थान है जिसके बिना कि जागतिक जीव जीवन धारण नहीं कर सकते । एक प्रकार से जल का विनाश जीवन का. विनाश होता है | संसार के पशु, पक्षी प्रकृति के शान्त वातावरण में रह कर ही आरोग्य प्राप्त करते हैं। उनके लिए प्रकृति ही डाक्टर और प्राकृतिक वस्तुएं ही दवा हैं । मनुष्य बुद्धिवाद और विज्ञान के चक्कर में पड़कर प्रकृति को भूल बैठा । अतः कृत्रिमता के जाल में फंसकर उसे नाना प्रकार के दुःख झेलने पड़ते हैं। हां तो बात यह है कि जल संसार का अत्यन्त उपयोगी पदार्थ है, अतएव उसका अनावश्यक खर्च अपराध है । मनुष्य ही नहीं प्राणी मात्र जल और वायु से ही जीवन धारण करते हैं । तपस्वी लोग दीर्घकाल तक अन छोड़ देते हैं पर जल और वायु के बिना तो वे भी लंबा काल नहीं बिता सकते । आजकल घरघर और गली-गली में नल हो जाने से पानी का वास्तविक मूल्य नहीं समझा जाता । किन्तु जब कभी कारणवश केन्द्र से पानी का निस्सरण कम होता अथवा बिल्कुल ही नहीं होता तब देखिए नगरों में पैसे देने पर भी घड़ा भर पानी नहीं मिल पाता और जान मुसीबत में फंसी जान पड़ती है। भले ही प्रचुर जल वाले प्रदेश में कठिनाई प्रतीत नहीं होती हो, तब भी प्यास की स्थिति में जल का महत्व आसानी से समझा जा सकता है । सोना चांदी और वस्त्राभूषण के बिना आदमी रह सकता है पर जल के बिना एक दिन भी नहीं रह सकता । अतः सद्गृहस्थ को यह ध्यान में रखना चाहिए कि पानी की एक बूंद भी व्यर्थ नहीं जाया पानी के अमर्यादित उपयोग से कीचड़ फैलता और उसमें मच्छर आदि अनेक जन्तु उत्पन्न होते हैं। मनुष्य यदि विवेक से काम ले तो व्यर्थ की हिंसा और
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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