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________________ ते (त) 1/2 सवि पास (पास) विधि 2/1 सक पर्याट्टए (पयट्टम) 2/2 वि नरे (नर) 2/2 बेरारण बडा [ (वेर) + (प्रणुवटा) ] [ ( वेर) - (अणुबद्ध) 1/2 वि] नरगं (नरम ) 2 / 1 उति (उमे) न 3/2 सक. 21. तेणे (तरण) 1 / 1 जहा (प्र) = जैसे संधिमुहे [ ( संधि) - (मुह) 7/1] होए (गहीए) भूकृ 1 / 1 अनि सकम्मुणा [ ( स ) - (कम्म) 3 / 1] evas ( कच्चs) व कर्म 3 / 1 सक भनि पावकारी (पात्रकारि ) 1 / 1 वि. एवं (प्र) = इसी प्रकार पया (पया) 8 / 1 पेन्च (प्र) = परलोक में इहं (म) = इस लोक में प • (लोम) 7/1 ( प्र ) = प्रोर लोए · कडा' (कड) भूकृ 6/2 मनि कम्माण' (कम्म) 6 / 2 न ( प ) = नहीं मोक्स (मोक्ख) 1 / 1 ग्रपभ्रंश प्रत्थि (श्रस ) व 3/1 प्रक. 22. संसारमावन्न [ ( संसारं ) + ( प्रावन्न ) ] संसारं 2 / 1 श्रावन्न (प्रावन्न ) मूल शब्द भूकृ 1 / 1 प्रनि परस्स (पर) 6/1 बि अट्ठा (भट्ट) 5/1 साहारणं (साहारण ) 2 / 1 वि जं (ज) 2 / 1 सवि (प्र) = भी करेइ (कर) व 3 / 1 कम्मं (कम्म) 2/1 कम्मस्स _ (कम्म) 6/1 ते ( 3 ) 1/2 सवि तस्स (त) 6/1 स उ ( प ) = हो बेकाले [ ( वेय) - (काल) 7/1] न ( प्र ) = नहीं बंधना (बंधव ) 1/2 बंभवयं ( बंधव-य) 2 / 1 ( भावार्थ में 'य' प्रत्यय) उदेति (उवे) व 3/2 सक / 1. कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पचमी विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है (हेम-प्राकृत-व्याकरण: 3-134 ) । 2. किसी भी कारक के लिए मूल सज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है । (पिशल : प्राकृत भाषामों का व्याकरण : पृष्ठ 517) ( यह नियम भूक वि के लिए भी काम लिया जा सकता है) 68 1 उत्तराध्ययन
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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