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व्याकरणिक विश्लेषण
1. प्रागानिसकरे[(पाणा)-(निद्देसकर)1/1 वि]गुम्णमुदवायकारए
[ (गुरुणं)+ (उववाय) + (कारए)] [(गुरु) -(उववाय)(कारम) I/1 वि] इंगियाकारसंपन्ने [(इंगिय+ (प्राकार) + (संपने)] [(इंगिय)-(प्राकार)--(संपन्न) मूक ।/। अनि]. से (त) 11 सवि विपीए (विगीय) 1/1 वि ति (प्र) पादस्वरूपद्योतक बुबाई (वुच्चई) व कम 3/1 सक अनि.
2. मा (अ)=नहीं गलिपस्से [(गनिम)+ (प्रस्से)] [(गलिन) वि
(मस्स) 1/1] ब ()=जैसे कि कसं (कस) 2/1 वयमिच्छे [(वयणं) + (इन्छे)] वयणं (वयण) 2/1 इच्छे (इच्छ) विषि 3/1 सक पुगो पुगो (म)बार बार कसं (कस)2/14 (प)= जैसे कि बठ्ठमाइन्ने [(दुट्ठ) + (पाइन्ने)] दट्ठ(द) संक अनि पाइन्ने (माइन्न) 1/1 पावर्ग (पारग) 211 वि परिवजए (परिवज्ज) विषि 3.1 सक.
3.
नापुट्ठो [(न) + (प्रपुट्ठो)] न (म)=नहीं अपृट्ठो (पुट्ठ) भूक 1/। अनि. वागरे (वागर) विषि 3/1 सक किधि (प्र)-कुछ
1. पूरी या माघी गावा के अन्त में मानेवासी ''का कियारों में बहुधा हो
पाता है (पिशल : प्राकृत भाषापों का म्याकरण, पृष्ठ 138) ।
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उत्तराध्ययन