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तु
142 विसं
हगाह
पीयं सत्पं धम्मो वेयाल
बह कालकर मह कुग्गिहीयं । विसम्रोवबन्नो इवाविवन्नो ।।
एसेव
हरगाह
143 1 लसणं सुविणं पउंजमारणे
निमित्त - कोमहलसंपगारे कुहे बिजासबदारजीवी न गन्बई सरनं तम्मि काले।
144 तमं तमेणेव उ में प्रसोले
सया दुही विप्परियासुवेई । संपावई नरग - तिरिक्खजोरिंग मोनं विराहेत्तु प्रसाहरुवे ॥
145 न त मरी कंठछेत्ता करे।
बं से करे अप्पणिया बुरप्पा । से पाहिई मच्चमुहं तु पत्ते पन्छाणतावेण
दयाविहूगे।
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• उत्तराध्ययन