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5. समय और नप में मेरे द्वारा वश में किया हुआ (मेरा)
आत्मा अधिक अच्छा (है); किन्तु) बंधन और प्रहार से दूसरों के द्वारा वश में किया जाता हुआ मैं (अधिक अच्छा) नहीं (ह।।
6. वचन से अथवा कम से, खल रूप में या भले ही गुप्त
(स्थान) में (काई भी मनुष्य) जागरूक (व्यक्तियों) का विरोध किसी समय भी कभी न करे ।
7. यदि) (किसी के द्वारा कुछ) पूछा गया (हो) (तो भी)
स्वकीय (निज के) प्रयोजन से या दूसरों के प्रयोजन से या दोनों के प्रयोजन से (व्यक्ति) पाप-युक्त न बोले, अनावश्यक न (बोले! (नथा) रहस्य-वाचक (भी) न (बोल) ।
8. निर्भय (आर) जागरूक (शिष्य) (गुरु के) कठोर भी अनु
शासन को हितकारी मानते हैं)। मूच्छितों के लिए सहनशीलता (प्रदशित) करनेवाला (नथा) (उनको) शुद्धि करनेवाला वह अवसर अप्रीतिकर होता है।
9. बुद्धिमान (व्यक्ति) (विनीत का निर्देश देते हुए) खुश होना
है, जैसे कि घुड़सवार उत्तम घोड को वशीभूत करते हुए (खुश होता है।। (किन्तु) (बुद्धिमान व्यक्ति) अविनीत की निर्देश देते हुए दुःखी होता है, जैसे कि घुड़-सवार दुर्दम घाई को (वणीभूत करते हुए) (दुःखो होता है) ।
चयनिका
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