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(राठामणि) । बेलिपप्पकासे [(बंगलिय)-(प्पगास) 11 वि] प्रमहम्पए (प्र-महाघम) 1/1 वि स्वाधिक 'प्र' होइ (हो) 3/1 प्रकह (म)= पादपूरक जाणएमु (जाणम) 712
141. कुसोलिगं [ (कुसील)-(लिंग) 211 ह (म)= इस लोक में
पारदत्ता (धार) संकृ. इसिग्भय [(मि)-(झप) 2|| जीविय (जीविय) मूल शब्द ?Iबिहाता-बिहात्ता (बिह) संक प्रसंजए 1 प्रसंजप) भूक)। अनि संजय (संजय) मन शन्द कृ2/1 पनि सप्पमाणे (लप्प ) वक्र II विरिणघायमागण्या [(विणिधायं+ (पागन्छा), विणियार्य (विणिपाय) 21 प्रागण्या (प्रागच्छ) व 3/1 सक से (त) 1|| मवि घिरं (प्र)
दीर्घ काल तक पि (प) = भी
142. विसं (विस) 1|| तु (अ):- और पीयं (पीय) भूक ||| अनि
जह (प्र) जैसे कि कासकर (कालकूड) 111 हवाइ (हरण) व 3/1 सक सरपं (सत्थं) 1|| मह (प्र)- जैसे कि कुग्गिहीयं (कुग्गिहीय) भूक I|| एसेब [(एस) + (a)] एस (त) 1/1 सवि एक (म)-वैसे ही पम्मो (धम्म) I|| विसमोववन्नो [(विसम) + (उववन्नो)] [(विसम)-(उववन्न) भूक 1/1 अनि] बेपाल (वयाल) मूल शब्द 1/1 इवाविवन्नो,(इव) + (अविवन्नो) इब (प)-जैसे कि प्रविवन्नो (म-विवन्न) मूक 1/1 पनि
1. कमी कमी रितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी बिभक्ति का प्रयोग पाया जाता
है। (हेम-प्राकृत-म्याकरण: 3-135) 2. कभी कभी मकारान्त पातु के मन्यस्प' के स्थान पर 'मा' की प्राप्ति पाई
बाती है हिम-प्राकृत-व्याकरण, 3-158)।
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उत्तराध्ययन