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________________ भोर रामो (म) = रात में प्रसज्जमाणे (प्र-सज्ज) वकृ I/1 अप्परिबडे (म-परिवद) भूक 1/I भनि यादि (प्र)=ोर बिहरह (विहर) व 3/1 प्रक 82. बोयरागयाए (वीयरागया) 3/1 (म)==वाक्यालंकार भंते (मंत) 8/1 वि जोवे (जीव) 1/1 कि (किं) 2/1 वि जरणमा (जरणयइ) प्रेरक व 3/1 सक पनि नेहाण बंधणारिण [(नेह) + (मणुबंधणाणि)] [(नेह)-(अणुवंषण)2/2] तण्हाण बंपणागि [(तण्हा) + (अणुबंधणारिण)] [(तण्हा)-(अणुबंधण) 2/2] य (म)=ौर वोज्छिवह (वोच्छिद) व 3/1 सक मण न्नेसु। (मगुन्न) 7/2 सद्द-फरिस-रस-स्व-गंषसु' [(सद्द)-(फरिस)(रस)-इव -(गंध) 7/2] घेव (प्र)=भी विरज्जइ (विरज्ज) व 3/1 प्रक 83. परजवयाए (मज्जवया) 3/11 () =वाक्यालंकार भंते (मंत) 3/1 वि जीवे (जीव) 1/1कि (कि) 211 वि जणयह (जणयइ) प्रेरक व 3/1 सक पनि काउग्जुययं [(काम) + (उज्जुययं)] [ (काम) - (उज्जुयया) 2/1] भावज्जुपयं [ (भाव) + (उज्जुययं)] [(भाव)—(उज्जुयया) 211] भासुज्जुययं [(भास) + (उज्जुययं)]' [(भास)- (उन्जुयया) 2/1] भविसंवायणं (म-विसंवायए) 211 प्रविसंवायसंपन्नयाए [(मविसंवायण)(संपन्नया) 3/1] पम्मस्स (धम्म) 6/1 प्राराहए (भाराहम) 1/1 वि भवइ (भव) व 3/1 प्रक 1. कमी-कमी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता । (हेम-प्राकृत-म्याकरण : 3-136) 88 ] उत्तराध्ययन
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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