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[ पद्मिनी चरित्र चौपई
पुण्ये हे सखी पून्ये हे सघला सुख,
रन' मई हे सखि रन में हे रंग लीला लहै जी। पामें हे सखी पामे हे नव निधि सुख, मुनिवर हे सखी मुनिवर हे लब्धोदय कहे जी ।।१।। परवत्ती चित्तौड़ प्रसंग
दोहा वात सुणो हिव पाछली, राजा नी मन रंग। छानो छटक्यो भूपती, कोई न लीधो संग ।। १ ।। राजा विण सोभे नहीं, राज सभा ने रात । सोझो गढ सारै कीयो, पिण नवी जाणी वात ॥२॥ जाय पूछयो महल में, राणी भाख्यो साच । पदमणि परणेवा सही, चाल्यो पालण वाच ॥३॥ सभा माहि बैठो सकज, वीरमाण वड़ वीर। कूड़ी वातज केलवी, पाले राज सधीर ॥४॥ लोका आगे इम कहै, माहि बैठा जाप। जपें प्रथवीपति जेहथो, पहवी वधई प्रताप ।। ५॥
ढाल ६-ता भव बंधण थी छोडि हो नेमीसर जी, ए देसी इम पालता राज हो राजेसर जी,
वउल्या पट खंड मास उपर वलि दिन घणा । संकाणा मन मांहि हो राजसर जी,
सहु कोई सेवक राणा तणा जी ॥१॥ १ रन्नइ हे सखि रन्नइ वेलाउल लहैजी २ मवि लाधी बात