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कवि लब्धोदय कृत कझिनी चरित्र चौबई
प्रथम खण्ड मंगलाचरण
दोहा श्री आदीसर प्रथम जिन, जगपति ज्योति सरूप । निरभय' पद वासी नमुं, अकल अनंत अनूप ॥१॥ चरण कमल चितस्युं नमुं, चउवीसम जिणचंद । सुखदायक सेवक भणी, साचो सुरतरु कद ।। २॥ सुप्रसन सामणि सारदा, होयो मात हजूर । वुद्धि दियों मुम ने बहुत, प्रगट वचन पंडूर ।।३।। ज्ञाता दाता दान धन, 'ज्ञानराज' गुरुराज । तास प्रसाद थकी कहुं, सती चरित सिरताज ॥४॥
कथा-प्रसङ्ग गौरा वादल अति सगुण सूर वीर सिरदार । चित्रकूट कीधो चरित, स्वामीधर्म साधार ॥५॥ सरस कथा नवरस सहित, वीर शृंगार विशेप। कहस्यु कवित कल्लोल स्यु, पूरव कथा संपेख ।। ६ ।। पदमणी पाल्यो शीलव्रत, वादल गौरा वीर। शील वीर गावत सदा, खाड मिली घृत खीर ॥ ७॥ १-निरमय २ हुइज्यो ३ ज्ञानधर ४ गुणी