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________________ ( ५६ ) और वह बादल की बात को सर्वथा सत्य मानकर गारूडी मन्त्र-प्रभावित साप की भांति पूर्णतया उसके अधीन हो गया। सुलतान ने कहा-मेरी लाज तुम्हारे हाथ है, वादल । जिस किसी प्रकार से सुभटों को समझा-बुझाकर पद्मिनी को मर पास भेजने में उन्हें सहमत कर लो। सुलतान ने बादल को सिरोपाव सहित लाख स्वर्णमुद्राएं देते हुए कहा कि काम वन जाने पर तुम देखना, मैं तुम्हारी कितनी इज्जत बढ़ाऊंगा। सुलतान ने पदमिनी को प्रेम-पत्र भेजना चाहा तो वादल न कहा-पत्र किसी अन्य व्यक्ति के हाथ लग जाने से ठीक नहीं। अतः मैं आपके सारे समाचार मौखिक ही सुनाऊंगा। इस प्रकार बादल ने मीठे वचनों से सुलतान को प्रसन्न कर विदा ली, सुलतान उसे पोलि द्वार तक पहुंचाने आया। बादल जब प्रचुर धन राशि लेकर घर लोटा तो माता व स्त्री को अत्यन्त प्रसन्नता हुई। गोराजी ने कहा-बादल अवश्य ही अपने काम में सफल होगा। पदामिनी को भी अपने पतिमिलन का विश्वास हो गया। सब लोग उसके बुद्धिचातुय्ये से हर्प विभोर हो गए। बादल ने राज-सभा में जाकर गुप्त मन्त्रणा की आ किया कि दो हनार सुन्दर चकडोल जरी के वस्त्र अरिख कलश मंडित तैयार हों, और प्रत्येक में दो दो शखधारा सन्नद्ध बद्ध रहें। बीच की प्रधान पालकी में गोराजी को बिका कर पदमिनी के रूप मे उनका परिचय दिया
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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