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________________ ( ४७ ) "नाना क्रीडा, विलास में रत रहता था। एक बार 'राघव चेतन' 'नामक प्रकाण्ड विद्वान ब्राह्मण, जोकि महाराणा द्वारा सम्मानित होने के कारण वेरोकटोक महलों मे जाया करता था, पद्मिनी के महलमें जा पहुंचा। महाराणा अपने क्रीड़ा-विलास के समय उसे आया देखकर कुपित हो गए और असमय में व अनाहूत आने की मूर्खता पर बहुत सी खरी-खोटी सुनाई। धक्का देकर निकाल दिये जाने पर अपमानित व्यास राघव चेतन शीघ्र ही चित्तौड़ त्यागकर दिल्ली चला गया। थोड़े दिनो मे उसकी विद्वता की प्रसिद्धि शाही-दरबार तक पहुंच गई। सुलतान अलाउद्दीन ने उसे दरबार में बुलाया और प्रसन्न होकर पाँचसौ गाँव देकर अपना दरबारी वना लिया। राघव चेतन ने राणा से प्रतिशोध लेने के लिए एक भाट और खोजे से घनिष्टता कर ली। राघवचेतन ने उसे किसी प्रकार पद्मिनी स्त्री की वात छेडने के लिए कहा, तो भाट राजहस की पाँख लेकर दरवार मे आया और सुलतान के किसी अनोखी वस्तु की वात पूछने पर पद्मिनी स्त्री के सौन्दर्य व सुकुमारता की प्रशंसा की। सुलतान ने कहा कि तुमने कहीं पद्मिनी देखी सुनी हो तो कहो! भाट ने कहा-श्रीमान् के 'महल मे हजार स्त्रियाँ है जिनमें कोई अवश्य होगी। खोजे ने कहा कि रावण की लका में पदमिनी खी सुनी गई थी और तो कहीं भी संसार मे नहीं है। यहाँ तो सव सखिनी स्त्रियाँ है। भाट-खोजे के विवाद मे सुलतान ने रस लिया और पूछा
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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