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गोरा बादल चौपई ]
[ १६५ राघव कहै, सुलतान, सुनो इक फंद करीजै, उठाइयै मूसाफ, जेण कर राय पतीजै । भेज्यो खवास सुलतान तब, रतनसेन-द्वारै गयौ, ले हुकम-राय दरवाँन तब, खोलि प्रोलि भीतर लियौ ।।६।। कहै ताम सुलतान, मान तू वचन हमारा, कहै फेर सुलतान, करूं तुझ सात हजारा। बहिन करू पदमनी, तुम भाई कर थप्पू, देख गढ चीतोड़, अवर बहु देस समप्पूँ। गल कठ लाय, ठहराय के, नाक नमण कर बाहुडौं, राजा रतनसेन, सुलतान कह, पहुर एक गढपरि चढौं ।।७०।। मान वचन सुलतान, आन मूसाफ उठायौ, महमानी बहु करी, गड्ड सुलतान बुलायो । लिये साथ उमराव, बीस दस सूर महाबल, बहुत कपट मन माँहि, गए सुलतान वहाँ चल । बहु भगत-भाव राजी करी,साह कहै भाई भयौ, पदमनि दिखाव ज्यू जाँह घर, दुरजन दुख दूर गयौ ।।७।।
- दूहा रतनसेन चहुवान कहि, वहिन करी सुलतान । वदन दिखावो वीर कों, दिया साह बहु माँन ॥७२।। चेरी एक अति सुंदरी, दे अपनी सिणगार । वदन दिखायौ साह कू, गिस्यौ सीस के भार ॥७३॥