SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७ ) कर देशान्तर में चला गया है। इससे मेरे जी मे अत्यन्त धोखा हुआ है। मैं देवल (देवी) के लिए रणथंभोर गया ; किन्तु मेरा एक काम भी सिद्ध न हुआ।" (फिर ) दिल्ली के स्वामी ने कहा, "मैने चित्तौड मे पदमिनी की सत्ता के बारे में सुना। मैंने जा कर रत्नसेन को बाँध लिया, किन्तु बादल उसे छुडा ले गया। जो अबकी बार मैंने छिताई को न लिया तो यह सिर में देवगिरि को अर्पण करूंगा।" ____ इस अवतरण से सिद्ध है कि जायसी के पद्मावत से पूर्व ही पद्मिनी की कथा और अलाउद्दीन की लम्पटता पर्याप्त प्रसिद्ध प्राप्त कर चुकी थी। जायमी ने पद्मावती, रत्नसेन और बादल का सृजन नहीं किया। ये जनमानस मे उससे पूर्व ही वर्तमान थे। समयानुक्रम से इस कथा मे अनेक परिवर्तन भी हुए होंगे। यह सम्भव नहीं है कि पद्मावती की कर्णपरम्परागत गाथा सोलहवीं शताब्दी तक सर्वथा तथ्यमयी ही रही हो। किन्तु उसे जायसी की कल्पना मानने की व्यर्थ कल्पना को अब हम तिलाञ्जलि दे सकते है। सन् १३०२-३ में रत्नसेन ( रत्नसिंह) की सत्ता निर्विवाद है। राघवचैतन्य ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। परम्परा-सिद्ध पद्मावती की सत्ता भी असम्भावना की कोटि मे प्रविष्ट नहीं होती। विषयलोलुप अलाउद्दीन, सती पद्मिनी, वीरव्रती गोरा और बादल ये सब ही तो स्वचरित्रानुरूप है। हर्षचरित मे भ्रातृजाया की रक्षार्थ कामिनी-वेष को धारण कर शत्रुशिविर मे पहुंच कर
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy