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________________ गोरा बादल कवित्त ] [ ११३ अल्लावदीन सुरताण की, सीस छत्र काइम रहइ, दरवेस वेस कहि विप्र मुणि, तंहि महि मागइ सोभी लहइ।।१८॥ फेरि वेस सुरताण, ताम निज मंदिर आयउ, ऊग्यर सूर परभात, तवही बंभण बुलायउ । सभा मध्य जब गयो, चित योगिणि समरतउ, छत्र सिंघासण सहित, साह नयणे निरखतउ । संक्यउ सु विप्र असपति सहित, निसचरिज रयणी फिर्यउ । मगइ सु मंगि असपति कहइ, वाचा मोहि ऊरण करउ ॥१६॥ तव सुरतांण निवाजीयु, राघव बहुत उछाह, जे मनि चीतइ सोइ करइ, वसि कीधउ पतिसाह ॥२०॥ मल्ल भाट सुरताण पय, आयउ मंगण कज्जि । मुहुल तलइ जइ द्वा करइ जिहा खडे असपति सज्जि ॥२१॥ कवित्त एक छत्र जिण प्रथीय, धरीय निश्चल धरणि परि, "आण किद्ध नव खंड, अदल किद्धउ दुनि भिंतरि । अनिल नलणि विभाड, उदाधि कर माल पखालिय, अंतेवर रही रंभ, रूप रंभा सुर टालीय । हेतम दान 'कवि' मल्ल भंणि उदधि खंध वे बखत गुनि, दीठउ न कोई रवि चक्र तलि, अल्लावदीन सुरतान धनि ॥२२॥ मम पढि भट्ट कवित, बुद्धि खोजें देइ पूरउ, सुख सवाद करि रोस, सिद्धहर मजलगि सूरज ।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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