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इस मत्रणा का दोष सपत्नी प्रभावती के पुत्र वीरभाण
को दिया गया है। (घ) कथा भाग को यत्र-तत्र परिवर्द्धित कर दिया गया है।
दलपत-दौलतविजय के खुमाण-रासो मे भी पद्मिनीकी कथा है' राघवचंतन्य से अलाउद्दीन ने राणा रतनसेन को पकडा । किन्तु इसमे रतनसेन जटमल नाहर की 'गोरा बादल चौपई' का कायर रतनसेन नहीं है, इसका अलाउद्दीन भी कुछ वादशाही शान रखता है। उसने गुण को परखना मीखा है।
राजपूत कालीन राजपूती का सुन्दर वर्णन भी इन शब्दों मे दर्शनीय है। रजपूता ए रीत सदाई, मरणे मंगल हरखित थाई ॥४७॥ रिण रहचिया म रोय, रोए रण भाजे गया।
मरणे मगल होय, इण घर आगा ही लगें ।। ८ ।। इस विपय की अनेक अन्य कृतियां भी प्राप्त है । टॉड ने अग्रेजी मे पदिमनी का चरित्र प्रस्तुत किया है। उसने रतनसेन के स्थान पर भीमसिंह को रखा । पद्मिनी सिंहलद्वीप के राजा हमीरसिंह चौहान की पुत्री है। गोरा पद्मिनी का
१-देखें पृ० १२९-१८१ २-देखें शोध पत्रिका, भाग 3, अङ्क • में श्री नाहटाजी का उपयुक्त
लेख।