SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १८ ] बनमाला और लक्ष्मण कथा प्रसंग अटवी पार करके विजयापुरी के बाहर पहुँचकर वट वृक्ष के पास राम ने रात्रिवास किया। लक्ष्मण ने वट वृक्ष के नीचे किसी विरहिणी स्त्री का विलाप सुनकर कान लगाया तो सुना कि-हे बन देवी। मैं बडी भाग्यहीन हूं जो इस भव में लक्ष्मण को वर रूप में न पा सकी, अब पर भव में मुझे वे अवश्य प्राप्त हों। ऐसा कह कर चह् गले में फांसी लगाने लगी तो लक्ष्मण ने शीघ्रतापूर्वक अपना आगमन सूचित कर फांसी को काट डाला। लक्ष्मण उसे राम के पास लाये, और सीता के पूछने पर कहा कि यह तुम्हारो देवरानी है। सीता के परिचय पूछने पर उसने कहा-इसी नगरी के राजा महीधर की पटरानी इन्द्राणी की मै वनमाला नामक पुत्री हूं। वाल्यकाल मे राजसभा मे बैठे हुए लक्ष्मण की विरुदावली श्रवण कर मैंने लक्ष्मण को ही पति रूप में स्वीकार करने की प्रतिज्ञा कर ली। पिताजी अन्यत्र सम्बन्ध कर रहे थे पर मैंने किसी की वाला नहीं की। जव पिताजी ने दशरथजी की दीक्षा, और राम लक्षमण का वनवास सुना. नो उन्होंने खिन्न होकर मेरा सम्बन्ध इन्द्रपुरी के राजकुमार से कर दिया। मैं अपनी प्रतिज्ञा पर अटल थी, अतः नजर बचा कर निकल भागी और वट वृक्ष के नीचे ज्योंही फांसी लगाई, मेरे पुण्योदय से लक्ष्मण ने आकर मुझे बचा लिया। वनमाला सीता के साथ उपर्युक्त वार्तालाप कर रही थी इतने ही मे राजा के सुभट आ पहुंचे और वनमाला को देखकर राजा को सारा वृत्तान्त सूचित कर दिया। महीधर राजा ने प्रसन्नतापूर्वक आकर
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy