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[ ४२ ] सं० १६६५, चैत्र शुक्ल १० को अमरसर में उन्होंने 'चातुमार्मिक बनाया । वहाँ के श्री शीतलनाथ ४६६६ से ये वीरमपुर आए और
व्याख्यान पद्धति' नामक ग्रन्थ
,
स्वामी का स्तवन भी उपलब्ध है । वह 'श्री कालिकाचार्य कथा' की रचना की ।
सं० १६६७ में उन्होने सिंध प्रान्त में विहार किया और मार्गशीर्ष शुक्ल १० गुरुवार को मरोद मे जंसलमेरी संघ के लिये 'पौध विधि स्तवन' बनाया। इसी वर्ष ये उच्चनगर जाए और अपने शिष्य महिमसमुद्र के आग्रह से 'श्रावकाराधना' बनाई । १६६८ में मुलतान आए और वहाँ प्रातःकाल के व्याख्यान में 'पृथ्वीचन्द्र चरित्र' यांचा इस ग्रन्थ की उक्त प्रति बीकानेर के राज्य-पुस्तकालय में है । यहीं 'सती मृगावती रास' भी रचा। इस समय सिंधी भाषा पर इनका अच्छा अधिकार हो गया था। नृगावती रास की एक ढाल और दो स्तवन इन्होंने सिंधी भाषा में बनाए । चैत्र कृष्ण १० को सुलतान में इनकी लिखाई हुई 'निरयावली सूत्र' की प्रति हमने यति चुन्नीलाल के संग्रह मे देखी थी । माघ शुक्ल को यहीं जेसलमेरी और सिंधी श्रावको के लिये 'कर्मछत्तीसी' बनाई। सं० १६६६ में ये सिद्धपुर ( सीतपुर ) आए और भखनूम मुहम्मद शेख काजी को उपदेश देकर सिंध प्रान्त मे गोजाति की रक्षा करवाई और पंचनदी के जलचर जीवों की हिंसा बंद कराई। अन्य जीवों के लिये भी इन्होंने अमारिपटह वजबाकर पुण्यार्जन के साथ-साथ विमल कीर्ति प्राप्त की ।
१६- यह स्थान शेखावाटी में है । द्रष्ट० 'जैन - सत्य - प्रकाश', वर्ष म अक १, इस विषय पर हमारा लेख ।