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( २६८ ) चारित्र पालइ दोष टालइ मुगति सुं मन लाविया ।। श्रीरामचंद महामुनीसर आडंबर सुं आवीया ।। ३६ ।। जीवतणी यतना करई, बोलई सत्य वचन्नो जी। अदत न ल्यई मेथुन तजई, नहि परिग्रह धनधन्नो जी ।। परिग्रह न राख नहिय, माया उकृष्टी रहणी रहइ । आतपना करइ उष्णकाला, सीतकालसी सहइ॥ कूरमतणी परिगुप्त काया, वरसालई तप आदरइ । अप्रमत्त संयम राम पाल जीवतणी यतना करई॥४०॥ सुग्रीव प्रमुख विद्याधरा, सोलसहस राजानो जी। राम सघातइ संचम लीयो, मनिधर निरमल ध्यानो जी।। मनिधरी निरसल ध्यान संयम पालतां ते तप तपई। सइनीस सहस अंतेउरी पणि लेइ संयम जप जपइ ।। सहु साधुनइ साधवी अपणो अरथ साधइ ततपरा। तरईआपनई तारई वीजानई सुग्रीव प्रमुख विद्याधरा ।। ४१ ।। सुव्रतसूरिना पचनमी, करइ एकल्ल विहारो जी' । नाना विधि अभिग्रह करइ, रहइ गिरि अटवी मझारोजी ।। अटवो मझारई तपतपतां अवधिज्ञान ते अपनो। जिणकरी जाण्यो वंधुनइ ए नरकनो दुख संपनो ।। मनचितवई लखमण सरीखो अरधचक्रो दुरदमी । भोगवी सुखुनइ पड्यो नरकइ सुत्रतसूरि ना पय नमी ।। ४२॥
१-पवन्दा गुरुपादान्ते तपस्तस वा रामः ।
एकाकी बने पूर्वाङ्ग श्रुतभावितः सत्रपि जहार ।।