________________
( २६७ ) राम अनंगलवण तणइं, वेटानइ दीयो राजोजी। सुग्रीवराय विभीपण, प्रमुख खेचर शुभ काजो जी। सुभ काज खेचर राजदेई, आपणां वेटां भणी। चारित्रलेवा भणी आया उतावलि करि अतिघणी ॥ एहवई श्रावक तिहा आवी अरहदास इसु भणइ । सुनि वीनती श्रीराम मोरी राम अनंगलवण तणई ॥३६॥ श्रीमुनिसुव्रत स्वामिनो, तीरथ वरतई एहोजी । चारण श्रमण मुनीसर, सुव्रतनाम छइ जेहो जी ।। नाम छइ सुव्रत जेहन ते साधु संप्रति छड उहाँ । तासु पासि दीक्षा ल्यउ तुम्हे तो वात जुगती छइ तिहा ॥ . सावासि श्रावक तुज्झनई तई, कह्यो वचन प्रस्तावनो। दीक्षातणो महोच्छव माडियो श्री मुनिसुव्रत स्वामिनो ।। ३७ ।। सकलनगर सिणगारिया, देहरे पूजा स्नात्रो जी। अट्ठाई महुच्छव भला, नाचइ नटुया पात्रो जी ।। नाचइ ते नटुया पात्र सगलई, संघ पूजा कीजीयई। जीमाडियइ भोजन भलो परि, वस्त्र आभरण दीजीयई। अतिघणा दीननइ दान देई सुजम जग विस्तारिया। श्रीराम चारित्र लेण चाल्या सकल नगर सिणगारिया ॥ ३८ ॥ आडंबर सु आवीया, सुत्रत मुनिवर पासो जी। विधि सुं कीधी वंदना, आपणई मनमइ उलासोजी॥ उल्लास मननई रामचंदइ आदरी संयम सिरी ।
सुग्रीव' प्रमुख विद्याधरे पणि रामनी परि आदरी । १-शत्रुघ्न सुग्रीव विभीपण विराधित प्रमुख षोडश सहल नृपे।
समं रामोवतं जगृहे सप्तत्रिंशत्सहस्राणि नारीणा नाभिश्च राम ||१||