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राम राजन छोडीयो, व्याप्यो मोहिनी कर्मो जी। जीवरहित लखमणतणो, देह आलिंगइ पड्यो भर्मो जी। पड्यो भर्म देह उपाडि ऊंचर, वइसारई खोलइ वली। करजोडी वीनति करइ एहवी, वात करि मुझ सुं मिली। पणि ते कलेवर केम बोलइ रामनो सूनो हियो। मोहिनी करम विटंब सगलो राम राजन छोडीयो ॥ १४ ॥ एहवी वात सुणी सहु, ते विद्याधर राजो जी। सुग्रीवराय विभीपण, प्रमुख मिली हितकाजो जो ॥ हित काज ते आया अयोध्या, राम नइ प्रणमी करी । करन वीनती तुं मुंकि मृतकनर सोग चिता परिहरी ।। तुं जाणि बांधव मुयो माहरो अथिर आऊपो बहु । तिण धरम उद्यम करि विशेषइ एहवी वात सुणी सहु ।। १५ ।। राय विभीपण इम कहइ, सुणि श्रीराम निसंको जो। सहुनइ मरणो साधरण, कुण राजा कुण रंको जी ।। कुण रंक तीर्थ कर किहा गणधर किहां चक्रवति किहा। वासुदेवनइ बलदेव छत्रपति कुण मुयो नहि कहि इहा ।। जउ तुम्ह सरिखा महापुरुष पणि एम सोगातुर रहइ । तर अवर माणस किसी गणणा राय विभीषण इम कहइ ।।१६।। तिणकारणि सोग मुकिनड, करउ लखमण संसकारो जी। एह वचन सुणी कोपीयो, राम कहइ अविचारोजी ।। अविचार राम कह सुणो रे दुष्ट पापिष्टो तुम्हे । चलो आपणो कुटम्ब बालो कहुं छं तुम्हनइ अम्हे ।।