________________
( २५६ )
हुणहार वात टलइ नहि जिण जीवे जेह निबंधीयो । ते सुखु नइ दुखु लहइ तिमहिज अविचार्यों अम्हे कीयो ||६||
इम चितवतां वहुपरी जीवाढण असमत्थो जी । देव गया देवलोकमई जिहाथी आया तेथो जी ॥ आया जिहाथी तेणि अवसरि मिली सहु अंतेवरी । अम्ह कंत स्नेहकरी रीसाणो मनावइ पाए परी ॥ जे किrs भोली को काइ ते खमिज्यो किरपा करी । करि जोडि करिनइ पगे लागी इम चितवता बहु परी ||७|| इण परि विविध वचन कह्या, सहु अंतेउरी तासो जी मृतक कलेवर आगलइ, निफल थयो ते निरासो जी ॥ नीरास सहु अंतेवरी थई, तिण समइ तिहां आविया | श्रीराम हाहा रव सुणी नइ, पासेवाण पूछाविया ॥ आज का बदन विछाय दीसह, सहोदर अवचन रह्या । किण सव्यो मुझ प्राणवल्लभ इण परि विविध वचन का ||८|
1
किम साम्ह जोवर नही, किम ऊठई नही आजो जी । किम कोप्यो मुझ ऊपर, किम लोपी मुझ लाजो लो || किम लाज लोपी माहरी इम कही सिर सु चुंवियो । वोलि तु बाधव वाह झाली, हीयासेती भीडियो || को कियो मुझ अपराध खमि तुं, तुझ विना न सकुं रही । मुझे प्राण छूट तुम पाखइ किम साम्हर जोवइ नहीं ॥ ६ ॥
राम मुयो जाणी करी, लागो वज्र प्रहारो जी । सडि पड्यो धरणीतलई, मूर्छित थयो निरधारो जी ॥