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( २४० ) धीजकरुं कहइ आकरो रे लाल | हो. निरमल करूं पीहर सासरो रे लाल ॥ ३१॥ हो. एती बात सीता कहइ रे लाल। हो. रामचन्दइ सहु सरदही रे लाल ।। ३२ ॥ हो. पहली ढाल पूरीथई रे लाल । हो० समयसुंदर आरति गई रे लाल ॥ ३३ ॥ हो.
सवेगाथा ॥४३॥ दहा ८ आँखे आंसू नाखतो, राम कहइ सुमनेह ।। तुं कहइ ते साचो सहू, तिणमई नहि सन्देह ॥ १ ॥ हुँ जाणुं छु ताहरो, सील सुद्ध कुल सुद्ध। प्रेमघणो मुझ उपरई, ए सहु बात प्रसिद्ध ॥ २ ॥ पणि तुम अपजस ऊछल्यो, किणही कमें विशेप । ते न सकुं श्रवणे सुणी, नयणे न सकु देखि ॥ ३ ॥ तिणमइ तुझनइ परिहरी, करुणा नाणी चित्त । दोस नही को ताहरड, तुं छइ सील पवित्त ॥४॥ जिम अटवी संकट टल्यो, सीलइ तणइ परभावि' । तिम जस थास्यई ताहरउ, धीरज तणइ समावि ॥५॥ वलती आगिमइ पइसिन, नीसरि तुं निस्संक । हेमतणी पर हे प्रिए, करि आपउ निकलंक ॥ ६ ॥ तुझ कलंकपिण ऊतरई, मुझनइ आणंद पूर। .
लोक कहइ धनधन्य ए, बाजई मंगलतूर ।। ७॥ १-समावि