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( २३५ ) काचित खाडती सालि । का० सु० मूसल मुंकी अखल ऊपरइ हे। काचित ऊफणतो दूध । का० सु० भो मुकी द्रोडी बहु परइ हो ||८|| काचित घरनो बार। का० सु० मुंकी ऊघाडउ गई देखण भणी है। काचित त्रुटोहार । का० सु० जाणइ नही हलफली अति घणी हे ।।६।। इम धसमसती नारि। इ० सु० गउखि चडी के के गलिए रही है। देखई कुमर सरूप। दे० सु० अचिरजि आणी हीयडइ गहगही हे ॥१०॥ कहइ वलि देई एम । क० सु० धन्य सीता जिण एहवा जणमीया हे। धन्याकन्या पणि एह। ध० सु० जि० । चउरी चडिकर मेलाविया हे।।१। इम सलहीता तेह । इ० सु० बाप काका सु चिहुंदिस परिवर्या हे। पहुता निज आवासि । प० सु० सकल कुटुंव केरा मन ठस्या' हे ॥१२॥ गया अंतेउर माहि । ग० सु० हेजइ अंतेऊरी सहू आवी मिली है। दे आलिंगन गाढ । दे० सु० रंग वधामण पुगी मनरली हे ।।१३।। आठमा खंडनी एह । आ० सु० ढाल थई ए पूरी सातमी हे। कही कुमरनी बात । क० सु० समयसुंदर कही मुझ मनरमी हे ॥१४॥ एतउ आठमउ खंड । ए० सु० पूरे कीधो इणपरि अति भलउ हे। साचउ सीता सील । सा० सु० समयसुंदर कहिस्य३ मामलउ हे ॥१॥
__ सर्वगाथा ॥३२३।। इति श्री सीताराम प्रवधे सीता परित्याग १ वर्जघगृहानयन कुश लव
युद्ध कुशलव कुमारायोध्याप्रवेशादि वर्णनोनाम अष्टमः खडः सम्पूर्णः ।
१-उछा ।
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