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( २१८ ) देव पूजो मुनिवर नई वादो, सोग मूंको परहो आज । च० सीता गुण समरंतर वरतइ, रांमचंद करइ राज ||१८|| च० कितरेके दिवसे पड्यो ओछो, सीता ऊपरि राग । पाच दिवस हुवड प्रेम नो रणको, पछ३ दरसण लगि लाग ||१धाच० त्रीजी ढाल पूरी थई इतरई, आठमा खंड नी एह ! च० समयसुंदर कहई ते दुख पामई,जे करई अधिक सनेह ॥२०॥ च०
सर्वगाथा ॥१६६॥
दहा २३ वज्रजंघ राजा घरे, रहती सीता नारि। गर्भलिंग परगट थया, पांडुर गाल' प्रकार ||१|| थण मुखि श्याम पणो थयो, गुरु नितंब गति मंद। नयन सनेहाला थया, मुखि अमृत रस विद ॥२॥ सुपन भला देखइ सदा, पेखइ पंजर सींह । गर्भ प्रभावइ ऊपजइ, सुभ डोहला सुदीह ।।३।। पूरे मासे जनमिया, पुत्र युगल अति सार। देखी देवकुमरि जिसा, हरखी सीता नारि ॥४|| वनजंघ राजा किया, वद्धावणा प्रगट्ट । उछव महोच्छव अति घणा, गीत गान गहगट्ट।।। सहु कुटंव संतोपीयो, भोजन भगति जुगत्ति। सखर दसूठण तिहां, राजा यथा सकत्ति ॥६॥ १–सातमी। २-नाल।