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( १६४ ) तिण कीधो अभिषेक तिहां, राम हुवा बलदेव । पटराणी सीता सती, लखमण पणि वासुदेव ॥ ६ ॥ पटराणी लखमण तणी, थई विसल्या नारि । लोक सहू हरषित थया, वरत्या जय-जयकार ॥ ७॥ राम विभीषण नइ दियो, लंकानगरी राज । कीयो किंकिध नो धणी, सुग्रीव सहु सिरताज ।। ८ ॥ हनुमंत नई श्रीपुर धणी, कीयो मया करि राम । चद्रोदर सुत नई दियो, पाताल लंका ठाम ॥ ६ ॥ रतनजटी नई थापियो, गीतनगर रो राय। दक्षिण श्रेणि वैताढ्य नउ, भामंडल सुपसाय ॥ १० ॥ यथायोग बीजा भणी, दीधा देस नइ गाम । विद्याधर संतोषीया, सीधा वंछित काम ॥ ११ ॥ अर्ध भरत साधी करी, अरि वसि करि आवाज | लखमण राम वे भोगवइ, नगर अयोध्या राज ।। १२ ।।
सर्वगाथा ||२७८|| । हाल ७
राग सारंग ॥ आंबो मउस्यो हे जिण तणइ ए गीतनी ढाल ।। सीता दीठउ हे सुदणउ, अन्य दिवस परभात । पति पासइ गई पाधरी, सहु कही सुपन नी बात ॥ १॥ सी० ॥ सामी सींह मई देखीयो, अंगइ अधिक उछाह । ते उतरतो आकास थी, पइसतो मुझ मुख माहि ।।२।। सी० ॥