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( १८६ ) सीता सहित श्रीराम नइ रे, निरखी सुर हरखंत रे। कुसुम वृष्टि ऊपरि करइ रे, गंधोदक वरपंति रे ।।१७॥ लं० परसंसा सीता तणी रे, वलि करइ देवता एम रे। धन धन ए सीता सती रे, साचो सील सुं प्रेम रे ।।१८।। लंक रावण खोभावी नही रे, अठि कोडि रोमराइ रे। मेरु चूला चालइ नही रे, पवन तणी कंपाइ रे ।।१६।। लं० लखमण सीतानइ मिल्यो रे, कीघउ चरण प्रणाम रे। सीता हियडइ भीडीयो रे, बोलायो लेइ नाम रे।।२०। लंक भामंडल आवो भिल्यो रे, वहिन भाई वहु प्रेम रे। सुग्रीव हनुमंत सहु मिल्या रे, आणंद वरत्या एम रे||२१|| लं० हिव श्रीराम हाथी चडी रे, सीता सहित उछाह रे। लखमण नई सुग्रीव सु रे, पहुता लंका माहि रे ।।२२।। लं० सीस उपरि धरता थका रे, मेघाडंवर छत्र रे।। चामर वीज बिहुं दिसइ रे, बाजई बहु वाजिन रे ।।२३।। लं० जय जय शवद बंदी भणइ रे, सुहव द्यइ आसीस रे ॥ रांमचंद राजेसरू रे, जीवउ कोडि वरीस रे ॥२४|लंक रावण भुवण पधारिया रे, रामचंद नरराय रे। गज थी नीचा ऊतरी रे, पहिला देहरइ जाय रे॥२शा लंक सांतिनाथ प्रतिमा तणी रे, पूजा कीधी सार रे। तवना कीधी तिहां घणी रे, पहुचाइ भवपार रे ।।२६।। लंक तवना करि बइठा तिहां रे, लखमण नई हनुमंत रे। रतनाव सुमालि नइ रे, विभीषण मालवंत रे ॥२७॥ लंक