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ढाल ५ ॥राग परजियो कालहरो मिश्र ।। सिहरा सिरहर तिवपुरी' रे, गढा बडो गिरिनारि रे। राण्या सिरहरि रुकमिणी रे, कुंयरा नन्द कुमार रे॥१॥ कसासुर मारण याविनइ, प्रह्लाद उधारण, रास रमणि घर आज्यो । घरि आज्यो हो रामजी, रास रमणि घरि आज्यो ।।२।।
॥ एगीतनी ढाल ॥ जयतसिरी पामी करी रे, लपमणनइ श्रीराम रे। सुग्रोव हनुमन्त साथि ले रे, भामण्डल अभिराम रे ॥१॥ लंकागढ़ लीधउ, लेई नइ विभीपण नइ दीधउ । राम लंकागढ़ लीधउ । गढ़ लीधर हो हो रामजी। राम लंकागढ़ लीधउ। आं०॥ लंकागढ रलियामणउ रे, सुंदर पोलि प्रकार रे। चउरासी चउहटा भला रे, सरगपुरी अवतार रे ॥ २॥ ले० लखमण राम पधारिया रे, लंका नगरी माहि रे। पइसारो सवलो सज्यो रे, अति घणो अंगि उछाह रे ॥ ३॥ ले० गडखि चडी कहइ गोरडी रे, ऊ लखमण ऊ राम रे। चामरधारी पूछियउ रे, कहउ सीता किण ठाम रे ॥४॥ लं० पुष्पगिरि परवत तणई रे, पासई पदम उद्यान रे। सीता तिहां वइठी अछइ रे, धरती प्रियुनो ध्यान रे ॥शाल.
१-मधुपुरी।