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दहा ६ तिण अवसरि वीजा दिनई, लंकापुरी उद्यान । अप्रमेयवल नाम मुनि, आया उत्तम ध्यान ॥ १ ॥ साथ छप्पन्न सहस मुनि, साधु गुणे अभिराम । शुभ लेश्या चड्यो साधजी, अप्रमेयवल नाम ।। २ ।। अनित्य भावना भावतां, धरतां निरमल ध्यान । आधी रातइ अपनो, निरमल केवलन्यान ।।३।। केवल महिमा सुर करई, वायड बाजित्र तूर । मुनि वांदण आवइ भविक, ग्रह ऊगमतइ सूर ॥४॥ देव तणी सुणि दुन्दुभी, लखमण राम समेत । विद्याधर साथे सहू, आया वंदण हेत ।।५।। कुंभकरण वलि इन्द्रजित, मेघनाद सुविलास । त्रिण्ह प्रदक्षिण देकरी, वठा केवलि पास ॥६॥
सर्वगाथा || १५६ ॥ ढाल ४
राग बंगाल ॥ ॥ जानी एता मान न कीजीयइ ए गीत नी ढाल | लखमण राम विभीषण वइठा, वइठा सुग्रीव राय रे । कुंभकरण मेघनाद सहुको, बइठा आगइ आय रे॥ १ ॥ द्यइ केवली भगवंत देसना, हां ए संसार असार रे। जन्म मरण अभवास जरादिक, दुखु तणो भंडार रे ।। २ ।। य० ॥ डाभ अणी ऊपरि जल जेहवो, तेहवो जीवित जाणि रे । संध्याराग सरीखो यौवन, गरथ ते अनरथ खांणि रे ।।३।। द्य० ॥