________________
( १७४ ) मेघाडम्बर सिर धत्त्यो, चामर वीजतो सार रे ।। वाजिन वाजइ अति घणा, भेदी मदन भंकार रे ।।२।।वि०॥ आप समा विद्याधरा, सुभट सहसदस साथि रे। इन्द्र तणी परि सोहतो, रावण हथियार हाथि रे ॥२६॥वि०॥ एहवइ आडम्बर रावण आवतो, दीठो दसरथ तणे पुत्रि रे । जगत्र प्रलय जलधर जिसउ, कालकृतान्त नइ सूत्रि रे ॥२७॥वि०॥ भणई लखमण भो भो भड, वावो मदन भेरि वेगिरे। सहु को महारथ सज करो, गय गुडो बाधव तेग रे॥२८॥वि०॥ चपल तुरंगम पाखरो, प्रगुणा' थावो पालिहार रे। टोप सन्नाह पहिरो तुम्हे, वेगि म लावो वार रे ॥२६॥वि०॥ हुकम सुणी सहु को जणा, आया श्रीराम नई पासि रे । केसरी रथई रामचंद चड्या, लखमण गरुड उल्हास रे ॥३०॥विना हय गय रथ वयसी करी, वीजा सुभट सिरदार रे। भामण्डल हनुमन्त सहु, राजवी रण झूझार रे ॥३१॥वि०॥ सहु मिली आया रणभूमिका, रणक्रीडा रसिक अपार रे। सखर सकुन थया चालता, जयत जणावइ निरधार रे ॥३२॥वि०॥ सातमा खंड तणी भणी, ए पहिली मई ढाल रे। समयसुदर कहइ आगइ सुणो, कुण-कुण थया ढक चाल रे॥३३।।
सर्वगाथा ||५५|
-सज