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विचित्र सेना सजी सबली, गया देखइ लोक ए। मुदमुदित क्रीडा करइ सगला, नहीं तिल पणि सोक ए॥ अहो पुत्र भाई कुंभकरणादिक सुभट सह बॉधिया । तउपणि न कोई करई चिंता, सुग्रीवादिक मॅकिया ||८|| विभीषण सुत सुभीषण कहइ, वइर बिना सहु कोयो जी। हताहत पर जात करउ, जिम कोलाहल होयोजी ।। करउ सबल कोलाहल नगर मई, लकागढ़ भाजो तुम्हें । आवास मंदिर महुल ढावो, हित वचन कहुं छं अम्हे ।। सहु मिली सुभट तिम हीज कीधो, एह उपद्रव कुण सहइ । समकाल सगलइ सोर ऊठ्या, विभीषण सुत सुभीषण कहई ।।२।। राखि राखि लंका धणी, लोक करइ पुकारोजी। दउडो दउडो' वाहरू, चडि आवउ असवारोजी ।। असवार आवो करउ रक्षा, वानरे गढ भेलियो। ए नगर मारि विध्वंस नाख्यो, धूडि धर्माणी मेलियो ।। अठियो रावण चुंब सभिलि, जोध जंग करण भणी। वारियो मंदोदरी नारि, राखि राखि लंका धणी ॥२०॥ साति भुवन सानिधिकरा, देवता ऊठ्या वेगोजी। सबल कोलाहल खलभली, देखी लोक उदेगोजी ।। उदेगि देखी देवताए, विभीषण वानर भडा । खिण एक माहे मारि भागा, सुर आगइ किम रहइ खडा ।। देवता वीजा देहराना, ऊठीया क्रोधातुरा । करई जुद्ध सातिना देव सेती, साति भुवन सांनिविकरा ।।२।।
१-घाउ धाउ