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( १६३ ) मंदिर प्रमुख सुभट मिल्या, प्रगट्या परम प्रमोदोजी। लखमण कुंमर निपेधिया, कीजइ किस्सा विनोदोजी ।। कीजीयइ झूठ विनोद केहा, जीवतइ रावण अरी। कहई राम रावण हण्यई सरिखो, गुंजतई तई केसरी ।। श्रीराम वचनइ सुभट साजा, विसल्या कीधा वली । कन्या ते लखमण नइ प्रणावी, मदिर प्रमुख सुभटा मिली ॥३।। ए विरतात सुण्यो सहू, रावण सेवक पासोजी । उंडउ आलोच माडियो, महेता सेती विमासोजी ॥ सुविमासि नई मिरगाक मंत्री, करइ एहवी बोनती। तु रूसि भावई तुसि सामी, कहिसु तुझ नइ हित मती ।। ए राम लखमण सवल दोखई, एइनइ लसकर बहू । जिण तुज्झ वांधव पुत्र बाध्या, ए विरतांत सुण्यो सहू ।।७।। सकती विद्या नाखी हणी, तेहनइ किम पहुचायोजी। सीता पाछी सुपियइ, तर सहु जंजाल जायोजी ॥ जंजाल जायइं मोल थायई, तो भलो हुयइ सर्व नो। तेहनइ आगली भाजीयइ तउ, किसो वहिवो गर्व नो ।। लंकेस कहइ मइ वात मानी, पणि सीतानइ मेल्हणी । अनइ मेल करिस्युं राम सेती, सक्रति विद्या नी हणी ||८|| उम आलोची मुकियो, दूत एक परधानोजी। करि प्रणाम श्रीराम नई, वीनति करई वहुमानोजो ।। वहुमान रावण एम बोलइ, मेलि करि पाछा वलो । रण थकी मनुष्य संहार थास्य३, पाप करम थकी टलो ॥