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दहा १२ मीतायइ धीरज धत्यो, तेवइ खेचर एक। राम कटक मई आवियो, मनि धरी परम विवेक ॥११॥ पणि भामंडल रोकियो, आवंता दरवारि। घूछयो कहि किम आवियो, ते कहइ सुणि सुविचार ॥२॥ लखमण नइ जउ जीवतो, तुं वांछइ सुभमत्ति । तउ जावा दे मुझ नइ, रांम समीपइ झत्ति ॥३।। जिम हुँ तिहां जाई कहुँ, साल उधरण उपाय । भामंडल हरपित थकउ, राम पासि ले जाय ॥४॥ विद्याधर इम वीनवइ, राम नइ करी प्रणाम । चिंता म करउ जीविस्थड, लखमण ते विधि आम ॥५॥
आणंद रामनई अपनो, कहइ तुझ वचन प्रमाण । भद्रक तुझ होइजो भलो, तुं तउ चतुर सुजाण ||६|| कहि तुं किहाँ थी आवियो, लखमण जीवइ कम । रामई इण परि पूछियो, विद्याधर कहइ एम ||७|| सुरगीत नाम नगर धणी, ससिमंडल सुपवित्र । उदर शसिप्रभा अपनड, हुं चंद्रमंडल पुत्र |८| गगन मंडल भमतइ थक३, मइ तसु लाधी वइर। सहसविजय नइ जाँगीयो, मुफ नई देखी वइर ।।६।। वेद करता तेण मुंम, दीघउ सकति प्रहार । पड्यो अयोध्या पुर तणइ, हुँ उद्यान मझार ॥१०॥ दुखियो भरतइ देखियो, मुझ न पड्यो ससल्ल । चंदनरत छांटी करी, कीधो तुरत निसल्ल ॥ ११॥