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( १२६ ) हुँ जाउंहुकम द्यो एकलो लकागढि, मारि भांजं भुजादंड सेती। वेगि रावण हणी सीत आणुं इहां, तुम्हे रहो एथि एवात केती ॥४०॥ भणइ श्रीराम हनुमंत एक वार तुं, तेथि जा सीतनइ कहि संदेसो। तुझ विरह करी रामजीवई दुक्खई,
मुज्झ विरहई जिसो तुज्म अंदेसो ।।४१॥ तु प्रिया जिमतिमकरी रहे जीवती, जीवतो जोव कल्याण देखई। जाम लखमण लेई साथि आवु तिहां, धर्म वीतराग नई करी विशेष माहरा हाथनी आ देजे मुंद्रडी, सीतनई जेम वेसास होई।
आवतो तेहनी राखड़ी आणिजे, मुझ नई पणि हुवई सुखु सोई ।।४३ 'एम समझाविनई रामचंद मुकियो, वीर हनुमत सेना संघातइ । खंड छठातणी ढाल पहिली इसी, 'समयसंदर भणो भलीय भांतई॥
सर्वगाथा ॥५॥
दहा २५ आकासई ऊडी गयो, हनुमंत सेन समेत । पहुतो गढ लंकापुरी, पणि रुध्यो गढ तेथि ॥१॥ हनुमंत पूछयो केण कियो, ए ऊँचो गढ़ संच। कहइ. मंत्री राक्षस तणो, सहु माया परपंच ।।२।। कूड यंत्र माहे तिसइ, असालिया मुख दिट्ठ। दाढ विडंवित उग्र विष, अहि वेढियो अनिट्ठ ||३|| वज़ कवच पहिरी करी, हनुमंत गयो हजूर । कूड यंत्र प्राकार सहु, भांजि किया चकचूर ॥४॥