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सीता खुसी हुयइ केम, लंकेस सु धरई प्रेम । तउ पणि न भीजइ सीत, राम विना नावइं चीत ॥५६ ।। नवि करइ भोजन पान, नवि करई देह सनान । नवि करइ कुसमनो भोग, बइठी करइ एक सोग ॥ ५७ ।। वलि कहइ मुडइ एम, मइ कीयो एहवो नेम । श्रीराम लखमण दोय, कहइ कुसल खेम छइ सोय ॥ ५८ ॥ जा सीम न सुणु कन्न, ता सीमे न जिमुं अन्न । सीतातणो विरतंत, नटुवी काउ जइ तत ॥ ५६ ॥ भोजन न वाछइ जेह, किम तुम्हनई वाछइ तेह । इम सुणी रावण राय, थयो तहवइ कहिवाय ॥ ६०॥ खिण रोयइ करइ विलाप, खिण कहइ पोतई पाप । खिण करइ गीतनई गान, खिण करइ जापनईध्यान ॥ ६१ ।। खिण एक धइ हुँकार, कारण विना वार बार। नाखई मुखइ नीसास, खिण खंचिनइ पडइ सास ।। ६२ ।। खिण आगणइ पडइ आइ, खिण एक नीसरि जाइ। खिण चडब जाइ आवासि, पातालि पइसइ नासि ॥६३ ॥ खिण हसई ताली देइ, खिण मिलइ साई लेइ । खिण द्यइ निलाडइ हाथ, खिण गलहथो खिण बाथ ॥ ६४॥ खिण कहइ हा हा देव, इम कीजीयइ वलि नैव । एक वसी हीयडइ सीत, नहि वात वीजी चीत ॥ ६५ ।। विरही करइ जे वात, ते किण कवी कहवात' । मई कही थोडीसी एह, रावणइ कीधी जेह ।। ६६ ।।
१ तेकिणइ कही न जात