SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०८ ) जिम खरदूषणनइ नास, नाखई घणा नीसास । भोजन न भावई धान, खायई नहीं तुं पान ।।२।। आवइ नहीं तुझ उंघ, न्याय नीति नाखि उल्लंधि। मोसु न मेलइ मीटि, मुंकइ घणी मुखिसीटि ।।३।। तब मुंकि सगली लाज, बोलीयो रावण राज | जो करई नहिं तुं रोस, जो करई मुझ संतोष ।। ४॥ तउ कहुं मननी वात, विण कह्या नावई धात । भरतानी तुं भक्त, ते भणी कहिवो युक्त ॥५॥ मंदोदरी कहइं नाह, साच काइ मुझ उछाह । मनि रीस न करइ कोइ, जे मनुष्य डाहो होइ ॥ ६ ॥ प्रीतम जिको प्रिय तुज्झ, ते बात अतिप्रिय मुज्म । तु कहइंजे मुझ काज, ते करूं तुरत हुँ आज ॥७॥ तब कहई रावण एम, अपहरी सीता जेम। आणी इहां मइ तेह, पणि धरइ नहीं ते नेह ।। ८॥ जो तेहनादरइ मुज्म, तो साच कहुं छु तुज्झ । मुझ प्राणजास्य छूटि, हुं मरिसि हियड़ो फूटि ।।६।। तातइ तवई जलविंद, नवि रहइ तिम मुझ जिंदि। मइकही माहरी बात, तु करिज्यु मुम' पोसात ॥१०॥ मंदोदरी कहइ नारि, सीता नहीं सुविचारि। तु सारिखो जे भूप, देवता सरिखो रूप ॥ ११ ॥ १--तुम
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy