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ढाल ५
॥राग मारुणी॥
"माफि रे बाबा वीरगोसाई" एगीतनी ढाल ।। रामई सीता खबर करावी, दण्डकारण्य भमारि जी। वलि आसई पासई ढुंढावी, न लही वात लिगार ॥१॥ रे कोई जाणड रे। कोई खवरि सीतानइ आणइ रे।
किण अपहरी राय राणई । को०। आ० ।। इण समइ एक विद्याधर आयो, लखमण पासि उदासजी। चन्द्रोदय अनुराधा नन्दन, राम विरहियो जासजी ॥२॥ रे० खरदूषण संताप्यो तेहनइ, वयर वहइ तसु साथि जी। करी प्रणाम कहइ लखमणनउ, द्यो मुझ वासइ हाथ ।। ३ ।। रे० हुँ सेवक तोरो थयो सामी, लखमण कीधो तेमजी । सवल विद्याधर मिल्यो सखाई, पुण्यउदय करि एम ॥४॥ रे० लेई विरहियो साथइ लखमण, करिवा लागो जुद्ध जी। खरदूपण देखी लखमणनई, कहिवा लागो क्रुद्ध ॥ ५॥ रे० रे रे दूठ धीठरे भूचर, मुम अंगजनइ मारि जी। वलि मुझ साम्हउ जुद्ध करईतूं, देखि मनावुहारि ।। ६ ।। रे० कहइ लखमण रे जीभ वाहइ ते, नर नहि पणि निरवुद्धिजी। सुभटातणा पराक्रम कहिस्यइं, सगली कारिज सिद्धि ॥ ७॥रे० वचन सुणी अति कुप्यो विद्याधर, करुं लखमण सिंहार जी। खडग वाहइ खरदूषण जेहवई, लखमण दीयो प्रहार जी ॥ ८ । रे०