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( १०१ ) लखमण साम्हठ चालतां रे, कुसुकन वास्यो राम रे। तो पणि धनुप आफालतोरेला, गयो बांधव हित कामरे ॥३४ । च०॥ सीता दीठी एकली रे, हाथ सुं झड़फी लीधरे। मयंगलइ ज्युं कमलनी रेला, रावण कारिज कीधरे ॥ ३५ । च० ।। दीधा जटायुध पंखीयइ रे, पांखा सेती प्रहार रे।। रावण तनु कीयो जाजरो रे ला, सामिभगत अधिकार रे ॥३६ । च०॥ तिण तडफडतो पंखीयो रे, काठो धनुप सुं कूटि रे।। नीचो धरती नाखियो रे ला, कडिवांसो गयो त्रुटि रे ॥ ३७ । च०॥ पुष्प विमान वइसारनइ रे, ले चल्यो सीता नारि रे। सीता दीन दयावणी रे ला, विलबइ अनेक प्रकार रे ।। ३८ । च०॥ रावण जातउ चितवइ, एतो दुखिणी आजरे। जोर करूँ तो माहरो रे ला, सुस जाइ सहु भाजिरे ।। ३६ । च० ।। साध समीपइ मइंलीयो रे, पहिलो एडवो सुस रे । हुँ अस्त्री अणबाछती रे, भोगवु नहि करि हुँस रे।। ४० । च०॥ रह्या अति संतोपता रे, अनुकूल थासई एहरे।। मुझ ठकुराई देखिनइ रेला, धरिस्यइ मुझ सु सनेह रे॥४१ । च०॥ राम संग्रामइ आवियो रे, लखमण दीठो तामरे। कहइ सीता मॅकी तिहारे ला, कां आया इणि ठामरे ॥ ४२ । च० ।। राम कहइ हुँ आवियोरे, सांभलि तुझ सिंहनाद रे । मइ न कीयो लखमण कहइ रे ला, करिवा लागो विषाद रे॥ ४३ च०॥ तुह्मनइ छेतरिवा भणी रे, कीधो किण परपंच रे । तुम्हे जावो उतावलारे ला, सीता राखो सुसंचरे ॥४४। च०॥
१-कसक