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(६७ ) कन्यारूप करी नवो, पहुंची राम समीपि । हावभाव विभ्रम करइं, कामकथा उदीपि ॥३॥ ऐ ऐ काम विटंबना, काम न छूटइ कोइ । पुरुष थकी ए अठगुणो,' अस्त्रीनई ए होइ ।।४।। रामउं पूछ्यो कवण तु, सुंदरि साचो बोलि। किण कारण वनमई भमई, एकली निपट निटोल ।।५।। वणिक सुता हुं ते कहइ, वंसस्थल मुझ गाम । मावाप माहरा मरिगया, हुं आवी इण ठाम ॥ ६ ॥ कामी १ लिंगी २ वाणियो ३, कपटी ४ अनई कुनारि। सांच न बोल पांच ए, छट्ठउ वली तयार ६ ॥ ७ ॥ हिव मुझ सरणो तुम्ह तणो, हाथसुं झालउ हाथ । प्रारथिया पहिडइ नही, उत्तम करइं सनाथ ।। ८॥ मौनकरी वइसी रह्या, रांम उत्तम आचार। पडउत्तर दीधो नही, पणि कुण थयो प्रकार ।। ह॥
सर्वगाथा ।। १२३ ॥
ढाल ४ सहर भलो पणि साकडो रे, नगर भलो पणि दूर रे । हठीला वयरी नाह भलो पणि नान्हडोरे लाल | आयो २ जोबन पूररे हठीला वयरी | लाहो२ लइ हरपालका रे लाल। एहनी ढाल नायकानी ढाल सारिखी छह ।
पणि याकणी लहरकउ छइ ॥ चन्द्रनखा विलखी थइ रे, वोलावी नहीं राम रे चतुरनर । फोकट आपो हारियो लाल, पणि को न सत्यो कामरे चतुरनर।॥१॥ १ चउगुणउ २ हीरउ रे