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अथवा केई तापस साध, मई संताप्याजी। अथवा लूटी लीधा द्रव्य, गला केहना काप्याजी । आग लगाडी वाल्या गाम, त्रियंच वालियाजी ।। १०॥ वो०॥ को मइ मारी जूनइ लीख के व्रत भांगाजी । के ग्रभ गाल्या चोख्या द्रव्य, ए पाप लागाजी। पुत्रनई वियोग मोनइ दुख पाड्याजो ।। ११ । वो० ॥ चन्द्रनखा इम कीया विलाप मोहनी वाहीजी। पुत्र न वोलई मुँयो कूण, राखइ साही जी। पीटी कूटी रही रोई रडवडी जी ।। १२ ।। वो० ॥ किण मास्यो ए माहरो पुत्र ढुंढ़ी काढू जी। जउ देखु तो तेहनइ मालि, मारु वाढूजी। जोती भभइ रे दंडकारण्य मइरे ।। १३ । वो० ॥ पंचमा खण्डनी त्रीजी ढाल पूरी कीधी जी। इहां थी हिव अनरथनी कोडि, चाली सीधी जी। समयमुन्दर कहइ ते सुणउ जी ॥१४ । वो० ॥
सर्वगाथा ||१०४॥
दहा ६
चन्द्रनखा भमती थकी दीठा दसरथ पुत्र । रूप अनोपम देखि करि, विस्मय पड़ी तुरत्त ॥१॥ पुत्रसोग वीसरि गयो, जाग्यो मदन विकार । इण सेती सुख भोगवु, नही तर धिग अवतार ।। २ ।।