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दृष्टान्त तथा उदाहरण(क) नजरि नजरि बिनो मिली, जिमि साकर सुं दूध
मन मन सुं विहुनउ मिल्यउ, दूध पाणी जिम सूध सन्देह (क) के देवी के किन्नरी, के विद्याधर काइ
इसी तरह संपूर्ण ग्रन्थ में अलंकारो का समावेश प्रयत्न नहीं, वल्कि स्पष्टतः स्वाभाविक है।
छन्द योजना-हमारे आलोच्य ग्रन्थ में अनुष्टुप छन्दों की गणनानुसार कुल ३७०० श्लोक है जिसकी ओर कवि ने स्वयं संकेत किया है
त्रिण्ह हजारनइ सातसइ, माजनइ ग्रन्थनो मानो रे सम्पूर्ण ग्रन्थ राजस्थानी लोक गीतों की विभिन्न ढाल रागरागनियो की तर्ज पर अधिकाशतः चौपाई छन्द में लिखा गया है ग्रन्थ में लगभग ५० देशियाँ हैं जिनको प्रत्येक नये पद के प्रारम्भ में कवि ने स्पष्ट कर दिया है एक उदाहण देखिये
प्रथम खण्ड की तीसरी ढाल के प्रारम्भ में कवि लिखता है।
ढाल त्रीजी सोरठ देस सोहामणउ, साहेलड़ी ए देवा तणउ निवास गय सुकुमालनी, चउढालियानी अथवा सोभागी सुन्दर तुझ बिन घड़ीय न जाय, ए देशी गीत एनी ढाल। * ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण दूहा छन्दमे है और उसके बाद एक ढाल है जिसके बाद पुनः दोहा छन्द प्रयुक्त है। इस तरह ग्रन्थ मे आद्यन्त एक दूहा छन्द के बाद एक ढ़ाल और फिर दूहा छन्द फिर ढाल यह क्रम चलता रहता है प्रत्येक नये खण्ड का प्रारम्भ दूहा छन्द से तथा अन्त सप्तम ढाल के साथ होता है। इस प्रकार नौ खण्डों