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अनुप्रास(क) “सात क्षेत्र मिलि सामठा, तर सगला सुख होय
तिण कारणि कहुँ सातमो, खड सुणो सहु कोय।" (ख) “हिव वीजउ खंड बोलस्यू , विहुँ वाधई बहु प्रेम" (ग) “सीतानी परि सुख लहउ, लाभउ लील विलास ।" उपमा(क) जेहवी कमलनी हिमवली, तेहवी तनु विछाय
परम्परागत उपमानों के साथ-साथ नये उपमानों का प्रयोग कवि की सूझ है
(ख) झालि पगे पछाडिस्एँ, वस्त्र धोवी धोयइ जेम (ग) मत चालणी सरिखा होज्यो रे उत्प्रेक्षा युद्धभूमी में मरता हुआ रावण ऐसा लगा। जाणे प्रबल पवन करि भागो
रावण ताल ज्युं दीसिवा लागो जाणे केतु ग्रह उपरती
किंवा त्रुटि पढ्यो ए धरती अतिशयोक्ति (क) हनुमान द्वारा लंका विध्वंस'पड़तइ मुवन धरा पिण कापी
शेषनाग सलसलिया लका लोक सवल खलमलिया
उदधि नीर ऊछलिया