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संयुक्त विद्या साधण चाल्यो, वारीतो सूरवोर जी। दंडकारण्य गयो एकेलो, कुंचरवा नदी तीर जी ॥२१ । ति०|| गुपिलमहावंसजालि माहे जई, विद्या साधइ एह जी । पग उचा मुखनोचौराखो, धूम्रपान करे तेहजी ॥ २२ । ति०॥ बारह वरस गया साधन्ता, वलि उपरि च्यार मासजी। तीन दिवस थाकइ पूरइ थयइ, लहियइ लील विलासजी ।।२३।तिला पंचमा खण्ड तणी ढाल वीजी, रावण उतपति जाणजी। समयसुन्दर कहइ हुँछ, छदमस्थ, केवलि वचन प्रमाणजी ॥२४। ति०
सर्वगाथा |
दूहा १२ तिणअवसरि लखमण तिहा, भवितव्यता विशेपि । वनमाहि भमतो अवीयो, लिख्या मिटइं नही लेख ॥ १॥ दिव्य खडग दीठो तिहां, वंस उपरिली जालि । केसर चन्दन पूजियउ, तेजइ माकझमाल ॥२॥ लखमण ते हाथे लियो, वाह्यो तिण बस जालि। ते छेदंतइ छेदियो, मस्तक बंस विचाल ॥३॥ कनक कुण्डल काने विहुँ, मस्तक कमल सुगन्ध । दीठो पृथिवीतलि पड्यो, उंचो तासु कबन्ध ॥ ४॥ लखमण पणि विलखो थयो, धिग मुझ पुरुपाकार । धिग वीरज धिग वाहवल, धिग धिग मुझ आचार ॥ ५॥ ए कोइ विद्या साधत, विद्याधर जप जाप। निरपराध मई मारियो, मोटो लागो पाप ॥६॥