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(६० ) साधनई दीधो रे भलई प्रस्ताव, दानतणई परभाव । रामन थई रे रिधि अदभूत, माणिक रतन' परभूत, ॥४१॥ सा० देवता दीधो रे रथ श्रीकार, चपल तुरंगम च्यार | रथ वइसीनइ रे सीताराम, मन वंछित भमइ ठाम ॥४२।। साक ममता देखइ रे कोतुक वृंद, पामई परमाणंद । खंड पांचमानी रे पहिली ढाल, समयसुंदर कहइरसाल ॥४३॥ सा०
[सर्वगाथा ४८]
दूहा ६ सीता लखमण राम बलि, दंडकारण्य ममारि। पहुँता तिहा कोइक नदी, तिहीं वन खंड उदारि । १॥ रामचंद सीता सहित, उत्तम मंडप माहि । बइठा लखमण नई कहइ, आणी मन उच्छाहि ॥२॥ गिरि बहु रयणे भन्यो, नदी ते निरमल नीर । वनखंड फल फूले भस्या, इहाँ बहु सुख सरीर ।।३।। माता बाधव मित्र सहु, ले आउ इणि ठाम । आपे सहु रहिस्यां इहाँ, नवो वसावी गाम ॥४॥ तउ वलतो लखमण कहइ, ए मुझ गम्यो विचार । मुझनइ पिण इहीं उपजइ, रहतां हरष अपार ॥२॥ इम ते आलोची करी, दसरथ राजा पुत्र । जाउ तिहीं रहइ तेहवइ, जे थयो तेसुणो तत्र ॥६॥
[ सर्वगाथा ५४] १-मणि माणिक